Saturday, December 23, 2017

अमृत

जिव्हा पर
नंगे पाँव चल
कण्ठ से लिपट
उदर में उतरे
अमृत ने
पूछा जब रूह से
कहाँ है वो,

अमृतपान की प्यासी की
बाहर से आवाज़ आई
"मंजी देह की तलाश में"

शुक्रिया

भभकते सूरजों
झूमती हवाओं के समन्दरों
दृढ़ संकल्प पर्बतों का
प्रावधान है
ऐ फूल
तेरे लिए,

मुस्कुरा दे
खिल कर ज़रा,
नहीं और
तो शुक्रिया के लिए...

Wednesday, December 6, 2017

तीर

यूँ ही
कैसे
ले लेता
जान
तीर उनका
ज़हर बुझा,

एक सीना
भी तो
दरकार था
जो मैंने
दिया नहीं...

Tuesday, December 5, 2017

इजाज़त

बड़ी नफ़ासत से
सम्भल सम्भल कर
निज़ाम ने थी
जाने दी
उनकी जान,

इतने मकबूल थे वो
कि उन्हें 
मरने की
इजाज़त न थी।