जिव्हा पर
नंगे पाँव चल
कण्ठ से लिपट
उदर में उतरे
अमृत ने
पूछा जब रूह से
कहाँ है वो,
अमृतपान की प्यासी की
बाहर से आवाज़ आई
"मंजी देह की तलाश में"
बड़ी नफ़ासत से
सम्भल सम्भल कर
निज़ाम ने थी
जाने दी
उनकी जान,
इतने मकबूल थे वो
कि उन्हें
मरने की
इजाज़त न थी।